भारत एक विविधताओं से भरा देश है, जो अपने मे अनेकों भाषाओं, भौगोलिक क्षेत्रों, धार्मिक परंपराओं और सामाजिक स्तरीकरण के बीच अविश्वसनीय सांस्कृतिक विविधता को समायोजित करता है। सभी भारतीयों में अपनी संस्कृति की विशेषता और विविधता पर गर्व की प्रबल भावना होती है। उदाहरण के लिए, देश के कृषि विस्तार और बुनियादी ढांचे, विज्ञान और इंजीनियरिंग में तकनीकी प्रगति गर्व के स्रोत हैं।
इसके अलावा, संगीत, ललित कला, साहित्य और आध्यात्मिकता (विशेष रूप से योग के अभ्यास) के भारत के समृद्ध कलात्मक सांस्कृतिक निर्यात से काफी गर्व होता है। किंतु यदि हमें एक ऐसे स्थान का पता चला वहां के लोग आज के टेक्नोलॉजी युग से दूर भक्ति रस में ही ओत प्रोत रहते हैं। यह आम लोगों के लिए अचरज का विषय होगा किंतु रामनामी संप्रदाय के लोगों के लिए नहीं। बीनू राजपूत (फिल्म निर्माता व निदेशक) हमें छत्तीसगढ़ के रामनामी संप्रदाय के लोगों से परिचित करातीं हैं, जो भक्ति योग परम्परा के अनुयायी हैं। इस संप्रदाय के प्रति आम लोगों में जागरूकता लाने के लिए तथा इनकी समस्याओं को आवाज़ देने के लिए वे अपनी डाक्यूमेंट्री फ़िल्म पर भी काम कर रहीं हैं, जो जल्द प्रसारित होगी।
इस संप्रदाय के बारे में जानकारियाँ जुटाने के संदर्भ में इनकी मुलाक़ात समुदाय के जनरल सेक्रेटरी से हुई जिन्होंने रामनामी गाँव को गहराई से जानने के विषय में इनकी सहायता की। इन्हें पता चला कि यहाँ स्थानीय लोगों के मार्गदर्शन हेतु एक प्रेसिडेंट (सेत बाई) तथा एक जनरल सेक्रेटरी (गुला रामनामी) हैं। इनके प्रेसिडेंट का चुनाव विशेष मानदंडों के आधार पर होता है जिसमें महिला अथवा पुरुष दोनों में से कोई भी व्यक्ति प्रत्याशी के रूप में भाग ले सकते है। प्रेसिडेंट के पद की नियुक्ति, व्यक्ति विशेष की योग्यता पर आधारित होती है। ‘योग्यता’ का निर्धारण भक्ति रस में प्रधानता, वैराग्य तथा राम नाम में विशेष आस्था व सामाजिक अनुभव के आधार पर होता है।
वर्तमान प्रेसिडेंट (सेत बाई) जिला – शक्ति की रहने वाली हैं। वहीं जनरल सेक्रेटरी (गुला रामनामी) चंदलड़ी-थाना, तहसील-भिलाई, गढ़-सारंगढ़ के निवासी हैं। इस समुदाय का प्रचार-प्रसार करने वाले अधिकांश लोग मुख्यतः गृहस्थ आश्रम से ही होते हैं क्योंकि इनमें वैराग्य धारण किये गए लोगों की संख्या कम पाई जाती है। बीनू जी अपनी इस यात्रा में कुछ अन्य लोगों से भी मिलती हैं जिसमें – (पुरुष) तिहारुराम, देवनारायण, धनीराम, अच्छेराम, मोहन, बाबूराम, पीताम्बर, रामसिंह, आदि तथा (महिलाएं) शांति, गीता, रामायण, एवं खीरबाई आदि हैं।
इनके नामों में भी राम नाम की झलक मिलती है जो उनकी विशेष आस्था का प्रतीक है। इस समाज के लोग मंदिर में पूजा नहीं करते हैं और न ही पीले वस्त्र धारण करते