बिहार में मुज़फ़्फ़रपुर के रेड लाइट एरिया की अंधेरी गलियों से ‘जुगनू’ निकल रहा है। ये ‘जुगनू‘ चार राज्यों के रेड लाइट एरिया के बच्चों और नौजवानों के हाथों से लिखी हुई पत्रिका है, जिसमें इस हाशिए के समाज का अनदेखा रूप दरशाया जाता है । इस जुगनू मैगजीन में राजस्थान, मध्य प्रदेश, मुंबई और बिहार के रेड लाइट एरिया के बच्चों के लिखे आर्टिकल को मैगजीन में छापा जाता है ।
मुजफ्फरपुर चतुर्भुज स्थान में पली बढ़ी और सामाजिक सरोकार के कार्यों को लेकर पहचानी जाने वाली नसीमा खातून जो इसकी संपादक है, कहती हैं कि हम एक नई छवि बनाने, समाज में स्वीकार्यता पाने और सम्मान का जीवन जीने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे है । दुख होता है, जब हमें नियमित रूप से ‘सेक्स वर्कर्स’ के रूप में पेश किया जाता है। एक प्रोग्राम जिसमें सब बच्चियां हिस्सा ले रही थे, के दौरान किसी ने हमारा समर्थन नहीं किया। एक स्थानीय हिंदी अखबार ने उन्हें बहुत अपमानित किया। इसने उनकी तस्वीर को हेडलाइन के साथ लिख दिया कि यौनकर्मियों ने भी समारोह में भाग लिया। सवाल ये है कि वे बच्चे थे, जो कड़ी मेहनत से अपनी परिस्थितियों से ऊपर उठने की कोशिश कर रहे थे। हिंदी अखबार की इस गलती से दुखी लड़कियों ने उस दिन कार्यक्रम स्थल को छोड़ दिया। इस कटु अनुभव से प्ररित होकर लड़कियों ने अपनी आवाज को बुलंद करने के लिए ‘जुगनू’ नाम की हस्तलिखित पत्रिका का प्रकाशन शुरू किया।
इस प्रकार 2004 में ‘जुगनू’ नाम का एक त्रैमासिक केवल छह पृष्ठों के साथ पैदा हुआ। ये अब 36-पृष्ठ तक बढ़ गया है और अभी भी नसीमा के संपादन में में सेक्स वर्कर्स के बच्चों की ओर से लिखा और प्रकाशित किया जाता है। नसीमा समय के साथ-साथ इस पत्रिका को आगे बढ़ाने के लिए बहुत कोशिश कर रही है। ‘जुगनू’ बिहार के अलावा, मध्य प्रदेश, राजस्थान और महाराष्ट्र में भी पढ़ा जाता है। नसीमा कहती हैं कि हमने यौनकर्मियों की समस्याओं को उठाने और लोगों और पुलिस के सामने तथ्य रखने के लिए अपनी खुद की पत्रिका शुरू करने का फैसला किया, जो अक्सर हमारे साथ तिरस्कारपूर्ण व्यवहार करते हैं।
‘जुगनू’ का लक्ष्य चतुर्भुज स्थान जैसे रेड-लाइट क्षेत्रों की छवि को बदलना है। जिसका नाम पास के एक मंदिर के नाम पर रखा गया है और मुगल काल से अस्तित्व में है। नसीमा अपने पत्रकारों – सेक्स वर्कर्स के अन्य बच्चों – की मदद से अभियान चलाती हैं, जो मुफ्त में काम करते हैं। लड़के और लड़कियां समाचार एकत्र करने के लिए साइकिल और परिवहन के अन्य साधनों से बाहर निकलती हैं और फिर हस्तलिखित कहानियां पत्रिका को देते हैं।
‘जुगनू’ के शुरूआती वर्षों में ये बाल पत्रकार लोगों से मिलने से झिझकते थे और अपनी पहचान छुपाते थे, लेकिन अब वे नियमित रूप से जिला कार्यालयों में जाते हैं। हाल ही में, दो पत्रकार एमडी आरिफ और सबीना खातून ने मुजफ्फरपुर के डीएम प्रणव कुमार को अपनी पत्रिका दिखाई। आरिफ ने हमें बताया कि वंचितों के बारे में लिखने के हमारे प्रयासों से डीएम साहब बहुत खुश दिखे और उन्होंने हमें प्रोत्साहित किया। ‘जुगनू’ के पन्नों को देखें, तो इसके पत्रकारों के लेखकों के बीच आपको अन्य यौनकर्मियों के बच्चों के सपने भी मिलेंगे कि वो सब बड़े होकर क्या बनना चाहते हैं जैसे राजस्थान के बाड़मेर के किशन नाथ कालबेलिया सामाजिक कार्यकर्ता बनना चाहते हैं, वहीं 15 वर्षीय ओमनाथ सेना में सेवा करना चाहते हैं।
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