आयुर्वेद ने जीवन के तीन उपस्तंभों में आहार को प्रमुख महत्व दिया है। आहार को मानव शरीर के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि यह बुनियादी पोषक तत्व प्रदान करता हैए जो पाचन और चयापचय की बुनियादी गतिविधियों को पूरा करने के लिए बहुत आवश्यक हैं। आयुर्वेद स्वस्थ और पौष्टिक आहार लेने पर जोर देता है। विरुद्ध आहार आयुर्वेद में वर्णित एक अनूठी अवधारणा है। उचित स्वास्थ्य और रोग का अंतर पौष्टिक और अस्वास्थ्यकर आहार पर आधारित है। जो आहार शरीर के तत्वों के बीच संतुलन बिगाड़ देता है उसे विरुद्ध आहार कहा जाता है। आचार्य चरक ने विस्तार से बताया और कहा कि जो व्यक्ति विरुद्ध आहार का सेवन करता है उसमें दोष के असंतुलन की संभावना होती है जिससे कई विकार उत्पन्न होते हैं। प्राचीन साहित्य यह स्पष्ट करता है कि कुछ आहार और उनके संयोजनों को विरुद्ध अन्न या असंगत आहार कहा जाता है।
आज के दौर में लोगों की दिनचर्या, खानपान बेहद बदल गया है। जीवनशैली और खान.पान की आदतों में इन भारी बदलावों के कारण हमारा शरीर विभिन्न विषाक्त पदार्थों के संपर्क में आ जाता है। आधुनिक जीवनशैली जो शरीर में विषाक्त पदार्थों के संचय के लिए बहुत ज़िम्मेदार है। पिज्जा, ब्रेड, आलू के चिप्स, शर्करा युक्त पेय और अन्य खाद्य पदार्थों सहित विभिन्न प्रकार के जंक फूड भी इसमें शामिल हैं। इस प्रकार के भोजन का संबंध विरुद्ध आहार से है। आयुर्वेद अच्छे जीवन के लिए सही प्रकार का आहार खाने पर जोर देता है जो संतुलित और पौष्टिक हो। विरुद्ध आहार आयुर्वेद में वर्णित एक अनूठी अवधारणा है। विरुद्ध आहार आज की अनुचित खान-पान की आदतों का एक महत्वपूर्ण पहलू है। विरुद्ध अन्न विभिन्न विकारों को जन्म दे सकता है। इससे अनजाने में कई खतरनाक बीमारियाँ हो सकती हैं, यहाँ तक कि मरीजों की मृत्यु भी हो सकती है। इसलिए, असंगत आहार संबंधी कारकों को सूचीबद्ध करना और रोगियों को ऐसे एटियलॉजिकल कारकों (निदान परिवर्जन) से बचने की सलाह देना महत्वपूर्ण है, खासकर, बच्चे जो आजकल बहुत अधिक स्वाद वाले खाद्य पदार्थों और तले हुए चिप्स (आलू, मक्का) आदि का सेवन करते हैं।
शादियों या पार्टियों में लोग बिना सोचे-समझे कुछ भी खाते रहते हैं। यही हालत घर से बाहर खाना खाने के दौरान भी होती है। जिसका स्वास्थ्य पर काफी गलत प्रभाव पड़ता है। कुछ ऐसे खाद्य पदार्थ हैं, जिनकी तासीर एक-दूसरे के साथ मेल नहीं खाती, जैसे दूध और मछली। इन्हें एक साथ खाने से आपको दोनों में से एक पोषण भी नहीं मिल पाता। ये दोनों ही एक-दूसरे के पोषक तत्वों को नष्ट कर देते हैं। यही विरुद्ध आहार हैं जो आपके पाचन तंत्र को गंभीर नुकसान पहुंचाते हैं।
आयुर्वेद में खान पान का तरीका और नियम बहुत महत्तवपूर्ण है। विरुद्ध आहार का नियम उन्ही नियमों में से एक है। कई बार ऐसा होता है कि हम किसी भी खाद्य पदार्थ के साथ कुछ भी खा लेते है। कुछ खाद्या पदार्थ ऐसे होते है जो सिर्फ अकेले खाने पर ही शरीर के लिए फायदेमंद होते है अगर उन्हे किसी और दूसरी चीज के साथ खाया गया तो ये नुकसानदायक हो सकते है। इन्ही खाद्य पदार्थों को आयुर्वेद में विरुद्ध खाद्य पदार्थ कहा गया है। कई आधारों पर विरुद्ध खाद्य पदार्थों को बांटा गया है। जैसे देश के आधार पर, मौसम के आधार पर, पाचन के आधार पर और मात्रा के आधार पर आदि।
लंबे समय तक विरुद्ध आहार का सेवन करने से कई तरह की बिमारी भी हो सकती है। विरुद्ध आहार शरीर में कई तरह के टॉक्सीन को पैदा करता है। जिससे शरीर में गंदगी पैदा होती है। आयुर्वेद के नियमों और सिद्धांतों का प्रचार-प्रसार कर रहा है। इसके अनुसार हमारा पूरा स्वास्थ्य इस बात पर निर्भर करता है कि हम क्या खाते हैं। आयुर्वेद में स्वास्थ शरीर धातुओं (ऊतकों), दोषों, अग्नि (विषाक्त पदार्थों को खत्म करने) और प्रसन्न मन के संतुलन से होता है। इन सभी को संतुलित रखने के लिए भोजन महत्तवपूर्ण है।
आयुर्वेद में सदियों पहले इस विषय पर गहन अध्ययन हुआ है और आचार्य वाग्भट ने अपने किताब वागभट संहिता मे विरुद्ध आहार अध्याय में इस विषय में विस्तृत जानकारी दी हैं। विरुद्ध आहार पर कितनी गहन चर्चा उस समय हुई होंगी यह केवल इस बात से आपको पता चलेगा की आचार्य वाग्भट ने केवल विरुद्ध आहार के ही 18 प्रकार बताये थे।
To read the full article kindly subscribe to the Magazine…