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Tuesday, September 24, 2024
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Atul Arya: The Man Behind the Voice

अंग्रेजी में एक कहावत है- Man proposes, god disposes. यानी इन्सान अपनी योजनाएं जीवन भर बनाता रहता है किन्तु होता वही है जो ईश्वर आपकी नियति तय करती है । और बहुत से लोगों की तरह, शायद ईश्वर ने मेरे लिए भी यही तय कर रखा था । एक छोटे से शहर-हापुड़ (उ0प्र0) का एक बच्चा, 12वीं तक वहां शिक्षा पाता है, फिर ग्रेजुएशन करने के लिए अपने पिता के पास दिल्ली आता है, जहां उसका अपना मकान नहीं होता, कॉलेज की तीन साल की पढ़ाई के दौरान 6 मकान बदले जाते हैं । किसी तरह बीकॉम ऑनर्स की डिग्री लेता है और नौकरी पाने की अंधी दौड़ में जुड़ जाता है ।

पहली नौकरी 1981 में लगती है एक चार्टर्ड एकाउंटेंट के पास, महज 300 रुपये महीना में । लेकिन फिर भाग्य जोर मारता है और सिर्फ तीन साल में वाणिज्य मन्त्रालय से, स्टेट बैंक और पंजाब नैशनल बैंक तक की नौकरियां बदल देता है । लेकिन भाग्य का चक्र चलता रहता है ।

एक रिश्तेदार, आकाशवाणी में एक सज्जन से परिचय कराते हैं और युवा-वाणी में माउथ-ऑर्गन बजाने के लिए कॉन्टेक्ट हो जाता है । ये सिलसिला करीब 12 साल, 30 साल की उम्र होने तक चलता है । इसी बीच आकाशवाणी के नेशनल चैनल, विविध-भारती, विदेशप्रासरण सेवा के लिए भी चयन हो जाता है, और उसमें भी कई साल काम करने का सुअवसर सुभाषिणी छाबड़ा जी, सुधा गुप्ता जी, राधा अग्रवाल जी और शिवचरण पालीवाल जैसे लाजवाब प्रासरणकर्ताओं का साथ और सीखने का सुअवसर मिलता है । समय और आगे बढ़ता है । आकाशवाणी के समाचार से वाप्रभाग में भी चयन हो जाता है । वहां भी अनेक वर्ष तक श्रद्धेय- देवकीनन्दन पाण्डे, रामानुज प्रसाद सिंह, मनोज कुमार मिश्र, अशोक वाजपेयी और जयनारायण शर्मा जैसे दिग्गजों से बहुत कुछ सीखने को मिलता है । समाचार कैसे बनाएं और कैसे पढ़े जाते हैं इस कला की बारीकियां वहीं से सीखी । नेशनल चैनल पर ओवरनाइट ड्युटी भी की जो रात 9 बजे से सुबह 6 बजे तक होती थी । गर्मियाँ हों या सर्दियाँ, महसूस ही नहीं होती थीं । एक-दो घण्टे की नींद कुर्सियों पर सोकर ली जाती थी और फिर अगले दिन दस बजे बैंक की नौकरी भी निभानी होती थी ।  इसी बीच दूरदर्शन ने भी अपना हाथ आगे बढ़ाया और कृषिदर्शन के समाचार पढ़ने से शुरुआत हुई । उन दिनों कृषिदर्शन के सर्वे सर्वा चौधरी रघुनाथ सिंह हुआ करते थे, जो बाद में हम लोग सीरियल में भी गए । फिर दूरदर्शन हिन्दी समाचार के मौसम हालात तक पहुंच बनी । उन दिनों शम्मी नारंग, शोभना जगदीश, सरला माहेश्वरी, वेदप्रकाश, जेवीरमण आदि का सिक्का खूब जमा हुआ था। समाचार के अन्त में, मौसम का हाल में जब अपनी आवाज सुनाई देती थी तो एक अनोखा एहसास होता था ।  उस दौर में लोग कहा भी करते थे कि शम्मी नारंग मौसम भी पढ़ने लगे । सुनकर मन गदगद हो जाता था और सपने देखता था कि एक दिन स्टूडियो की कुर्सी पर बैठकर मैं भी समाचार पढ़ूंगा ।

एक समय ऐसा भी आया, जब तत्कालीन न्यूज प्रॉड्यूसर से मैंने गुजारिश की, कि मैं एएनआई के घूमता आईना, और डेडलाइन कश्मीर जैसे शो स्क्रीन पर कर रहा हूं, और मौसम का हाल भी ऑफस्क्रीन कई वर्ष से पढ़ रहा हूं, तो मुझे भी स्क्रीन पर समाचार पढ़ने का अवसर दिया जाए । इस पर उन महोदय का उत्तर था-“आईएएस बनना आसान है, न्यूजरीडर बनना मुश्किल” । मुझे मन ही मन में हंसी आई कि आपके कुछ न्यूज रीडर तो ऐसे भी हैं जो अपना नाम तक ठीक से बोल नहीं पाते, और मुझ से ये बहाना बनाया जा रहा है ।

खैर, मैंने इस घटना को इतने विस्तार से इसलिए बताया, क्योंकि इसके बाद ही दूरदर्शन से मेरा मोह-भंग हुआ था । इसी दौरान सैटेलाइट चैनल आने लगे थे, सबसे पहले जीटीवी आया, और उसी के साथ आया उसका साप्ताहिक न्यूज कैप्सूल- घूमता आईना । ये प्रोग्राम मैंने 4 साल किया, अनुवाद, वॉइस ओवर और प्रेजेंटेशन सहित । जब शो की ऐंकर और एएनआई की मैनेजिंग एडिटर श्रीमती स्मिता प्रकाश अमेरिका ज़ाया करती थी, तब मैं ही स्क्रीन पर इस शो को पेश किया करता था ।

एनएनआई के लिए मैंने कई शो किए, लेकिन हर रिश्ते और हर काम की एक उम्र होती है, तो यहां भी बात बस 4 साल ही चली । और इसके बाद आया मेरे करियर का सबसे बड़ा मोड़ –डिस्कवरी चैनल । 1996 में डिस्कवरी चैनल के भारत आने की सुगबुगाहट शुरू हो चुकी थी और फिर दिल्ली में कुतुब एन्क्लेव में इसका दफ्तर विधिवत् खुला । किरण कार्निक जी इसके सर्वे सर्वा बने । बहुत-ही योग्य व्यक्ति । अगस्त 1996 में, न जाने कैसे UTV को मेरे बारे में पता चला और मुम्बई से एक सज्जन एक स्क्रिप्ट और एक वीडियो लेकर आ पहुंचे । शाहपुर जाट के उनके कार्यालय में मुलाकात हुई, और मैंने डिस्कवरी चैनल की इस पहली स्क्रिप्ट को लिखा भी, और आवाज भी दी । नाम था- galactic splendors. फिल्म पास हो गई, और काम शुरू हो गया । करीब 4 साल तक दिल्ली से काम चलता रहा , इस दौरान मैंने इस चैनल के लिए लगभग एक हजार फिल्मों में स्वर और लेखनी का योगदान दिया । फिर आया 2001 का साल । उन दिनों डिस्कवरी चैनल और नैशनल जियोग्राफिक चैनल के बीच जबर्दस्त प्रतिद्वन्द्विता हुआ करती थी । किन्हीं अंदरूनी कारणों से डिस्कवरी ने दिल्ली छोड़, मुंबई जाने का फैसला किया, और एनजीसी के लिए दिल्ली आने का रास्ता साफ हो गया । फिर मैंने एनजीसी के लिए भी लिखना और बोलना शुरू कर दिया । उन दिनों तीन या चार ही मुख्य स्वर हुआ करते थे, और काफी लोग नैरेटर बनने के सपने देखते थे, लेकिन ईश्वर ने मुझे इस खास रोल में ऐसा फिट किया, कि किसी-किसी दिन तो मैं 3-3 वीओ किया करता था । उस दौर में जिन लोगों को नैरेटर का रोल मिलता था, उनमें स्वर्गीय संजय पांडे, संजय बनर्जी ,बाबलाकोछड आदि प्रमुख थे ।

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